किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए नकदी फसलों की खेती पर ध्यान देना चाहिए। यहाँ नकदी फसल से मतलब हैं ऐसी फसलें जिनका बाजार में बहुत डिमांड होती है और उनके मूल्य भी अच्छे मिलते हैं। इस तरह से हमारे लिए मसाला फसलें एक अच्छी कमाई का साधन बन सकती हैं। मसाला फसलों में हल्दी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह फसल घरों में खाना बनाने के लिए उपयोग होती है। इसके औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग सौंदर्य उत्पादों में भी किया जाता है। इसके साथ ही, हिंदू धर्म में इसका उपयोग हर मंगलिक कार्यों में भी किया जाता है। इसलिए, हल्दी की मांग बाजार में काफी अच्छी है। अगर किसान हल्दी की खेती करें तो उन्हें अच्छी आय मिल सकती है। सबसे अच्छी बात यह हैं कि इस समय में किसान हल्दी की बोने कर सकते हैं। हल्दी की बोने का उचित समय 15 मई से 30 जून तक होता है।
हल्दी की सिम पीतांबर किस्म
हल्दी की सिम पीतांबर किस्म की खेती किसानों के लिए अधिक लाभदायक साबित हो सकती है। यह किस्म केंद्रीय औषधीय एवं सगंध अनुसंधान संस्थान (सीमैप) द्वारा विकसित की गई है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर करीब 65 टन हल्दी कंद की उत्पादन संभव होती है। इस किस्म की प्रक्रिया में सात से नौ महीने का समय लगता है जब तक यह पूरी तरह पक जाती है। इस किस्म के पौधों पर कीटों का प्रभाव भी कम देखा गया है। इस किस्म की पत्तियों पर धब्बा रोग के प्रभाव से फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
हल्दी की सुंगधम किस्म
हल्दी की सुंगधम किस्म भी एक अच्छी किस्म है। इस किस्म के कंद लंबे और हल्की लालिमा रंग के होते हैं जिनमें पीले रंग की चमक होती है। यह किस्म 210 दिनों में पूरी तरह पक जाती है। पैदावार की बात करें तो किसान इस किस्म से प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
हल्दी की सोरमा किस्म
हल्दी की सोरमा किस्म भी एक अच्छी किस्म है। इस किस्म के कंद नारंगी रंग के होते हैं जो उनकी खासियत है। यह किस्म लगभग 210 दिनों में पूरी तरह पक जाती है। प्रति एकड़ से 80 से 90 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
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हल्दी की सुदर्शन किस्म
हल्दी की इस किस्म के कंद आकार में छोटे होते हैं और बहुत सुंदर दिखते हैं। इस किस्म को तैयार होने में लगभग 190 दिन का समय लगता है। हल्दी की इस किस्म से प्रति एकड़ 110 से 115 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
हल्दी की आरएच 5 किस्म
इस हल्दी की किस्म के पौधे 80 से 100 सेंटीमीटर ऊंचे होते हैं। यह किस्म लगभग 210 से 220 दिनों में पूरी तरह तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार की बात करें तो प्रति एकड़ से 200 से 220 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
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हल्दी की बुवाई का तरीका
हल्दी की बुवाई दो प्रकार से की जाती है। पहली समतल विधि द्वारा और दूसरी मेढ़ विधि है।
समतल विधि
इस विधि में सबसे पहले भूमि की जोताई करके उसे समतल कर लेते हैं। इसके बाद खेत में हल्दी की रोपाई की जाती है। रोपाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
मेढ़ विधि
- मेढ़ विधि के अंतर्गत हल्दी की बुवाई दो तरीके से की जाती है। पहली तरीके में हम एकल पंक्ति विधि का उपयोग करते हैं, जबकि दूसरे तरीके में हम दो पंक्ति विधि का उपयोग करते हैं।
- एकल पंक्ति विधि में, हम 30 सेमी के मेढ पर गांठ को बीच में 20 सेमी की दूरी पर रखते हैं और 40 सेमी मिट्टी से ढंक देते हैं।
- दूसरे पंक्ति विधि में, हम 50 सेमी के मेढ पर दो पंक्तियाँ बनाते हैं, जहाँ पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखी जाती है और गांठ से गांठ की दूरी 20 सेमी रखी जाती है। इसके बाद हम 60 सेमी मिट्टी से ढंकते हैं।
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हल्दी की बुवाई का सही तरीका
हल्दी की बुवाई का सबसे सही तरीका है कि हम 30 से 35 ग्राम की गांठ का उपयोग करें। बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखें और कंद से कंद की दूरी 20 सेमी रखें। कंद की 5-6 सेमी गहराई पर हम इसे रोपाई करें। रोपाई से पहले, हमें ध्यान देना चाहिए कि हम कंद को इंडोफिल एम-45 के 2.5 ग्राम और वेभिस्टीन के 1.0 ग्राम के आनुपातिक प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 30 से 45 मिनट तक उपचार करें। इसके बाद ही हमें इसे बुवाई करनी चाहिए।
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